Bajrang Baan in Hindi | सम्पूर्ण बजरंग बाण पाठ | | बजरंग बाण कब पढ़ें

SAMPURN BAJRANG BAAN PAATH IN HINDI

सम्पूर्ण बजरंग बाण पाठ

BAJRANG BAAN कैसे और कब पढ़ें ।

सम्पूर्ण बजरंग बाण किसने और क्यूँ लिखा ? :-

गोस्वामी तुलसीदास पर काशी मे एक तांत्रिक ने मारण मन्त्र का प्रयोग किया था, जिसके प्रभाव से उनके पूरे शरीर पर फोड़े निकल आए थे और उनके प्राण संकट मे पड़ गए । तभी तुलसीदास जी ने सम्पूर्ण बजरंग बाण (Sampurn Bajrang Baan)  लिखकर बजरंगबली से प्राण बचाने का अनुरोध किया । इस बजरंग बाण के प्रभाव से उनके शरीर के फोड़े एक दिन मे ठीक हो गए और मारण मन्त्र का असर निष्क्रिय हो गया।  तभी से इस सम्पूर्ण बजरंग बाण को अचूक माना जाता है ।

बजरंग बाण का पाठ कब करें ? :-

सम्पूर्ण बजरंग बाण का पाठ तभी करें जब आप घोर मुसीबत मे हों और उस मुसीबत से निकालने का रास्ता नही सूझ रहा हों । क्यूंकि ऐसी मान्यता है की जहाँ बजरंग बाण का पाठ होता है वहाँ बजरंगबली सहायता के लिए स्वयं आते हैं । हनुमान जी भगवान श्रीराम के भक्त हैं और जब भगवान श्रीराम का नाम लिया जाएगा वहाँ बजरंगबली सहायता के लिए जरूर आएंगें। बजरंग बाण मे पवनपुत्र हनुमान जी को उनके आराध्य श्रीराम की सौगंध दिलायी गई है । अतः हनुमान जी आपकी रक्षा अवश्य करेंगें ।

बजरंग बाण का पाठ कब न करें ? :-

  • किसी से ईर्ष्या भाव से इसका (Bajrang Baan) इस्तेमाल बिल्कुल न करें ।
  • अनैतिक कार्यों मे सफल होने के लिए इसका (Bajrang Baan) उपयोग न करें ।
  • भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए इसका (Bajrang Baan) इस्तेमाल नही करना चाहिए ।
  • किसी भी प्रकार के गलत कार्यों की सिद्धि के लिए इसका (Bajrang Baan) उपयोग नही करने की सलाह दी जाती है ।

बजरंग बाण का पाठ कैसे करें ? :-

  • सर्वप्रथम गणेश जी का ध्यान करें ।
  • श्री राम एवं सीता जी का ध्यान करें ।
  • हनुमान जी को याद करें और अपने कष्ट को दूर करने की प्रार्थना करें ।
  • बजरंगबाण का पाठ करें ।
  • भगवान श्रीराम का भजन करें फिर हनुमान चालिसा पढ़ें

SAMPURN BAJRANG BAAN LYRICS

॥ दोहा ॥

निश्चित प्रेम प्रतीति ते, विनय करै सनमान ।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान ॥

॥ चौपाई॥

जय हनुमान सन्त हितकारी ।

सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥

जन के काज विलम्ब न कीजै ।

आतुर दौरि महा सुख दीजै ॥

जैसे कूदि सिन्धु महिपारा ।

सुरसा बदन पैठि विस्तारा ॥

आगे जाइ लंकिनी रोका ।

मारेहु लात गई सुरलोका ॥

जाय विभीषण को सुख दीन्हा ।

सीता निरखि परमपद लीन्हा ॥

बाग उजारि सिन्धु महं बोरा ।

अति आतुर जम कातर तोरा ॥

अक्षय कुमार को मारि संहारा ।

लूम लपेटि लंक को जारा ॥

लाह समान लंक जरि गई ।

जय जय धुनि सुर पुर महं भई ॥

अब विलम्ब केहि कारन स्वामी ।

कृपा करहु उर अंतर्यामी ॥

जय जय लखन प्राण के दाता ।

आतुर होइ दुख करहु निपाता ॥

जै गिरिधर जै जै सुख सागर ।

सुर समूह समरथ भटनागर ॥

ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले ।

बैरिहि मारू ब्रज की किले ॥

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो ।

महाराज प्रभु दास उबारो ॥

ॐकार हुंकार महाप्रभु धावो ।

ब्रज गदा हनु विलम्ब न लावो ॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमन्त कपीसा ।

ॐ हुं हुं हुं  हनु अरि उर शीशा ॥

सत्य होहु हरि शपथ पायके ।

रामदूत धरू मारू जाय के ॥

जय जय जय हनुमान अगाधा ।

दुख पावत जन केहि अपराधा ॥

पूजा जप तप नेम अचारा ।

नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ॥

वन उपवन मग गिरि गृह माहीं ।

तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ॥

पाय परौं कर जोरि मनावौं ।

येहि अवसर अब केहि गोहरावौं ॥

जय अंजनि कुमार बलवन्ता ।

शंकर सुवन वीर हनुमंता ॥

बदन कराल कल कुल घालक ।

राम सहाय सदा प्रति पालक ॥

भूत, प्रेत, पिशाच निशाचर ।

अग्नि बैताल काल मारी मर ॥

इन्हे मारू, तोहि शपथ राम की ।

राखउ नाथ मरजाद नाम की ॥

जनक सुता हरि दास कहावो ।

ताकी शपथ विलम्ब ना  लावो ॥

जय जय जय धुनि होत अकासा ।

सुमिरत होत दुसह दुख नाशा ॥

चरण शरण कर जोरि मनावौं ।

येहि अवसर अब केहि गोहरावौं ॥

उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई ।

पायं परौं कर जोरि मनाई ॥

ॐ चं चं चं चपल चलन्ता ।

ॐ हनु हनु हनु हनुमन्ता ॥

ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल ।

ॐ सं सं सहमि पराने खल दल ॥

अपने जन को तुरत उबारो ।

सुमिरत होय आनन्द हमारो ॥

यह बजरंग बाण जेहि मारै ।

ताहि कहौ फिर कौन उबारै ॥

पाठ करै बजरंग बाण की ।

हनुमत रक्षा करै प्राण की ॥

यह बजरंग बाण जो जापै ।

ताते भूत प्रेत सब कांपै ॥

धूप देय अरु जपै हमेशा ।

ताके तन नहिं रहै कलेशा ॥

॥ दोहा ॥

प्रेम प्रतीतिहि कपि भजै,

सदा धरै उर ध्यान ।

तेहि के कारज सकल शुभ,

सिद्ध करै हनुमान ॥

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