धाता सूर्य- चैत्र मास में सूर्य देव के प्रथम स्वरुप की महिमा एवं ‘लोलार्क’ की प्राचीन कथा।

सूर्य देव के प्रथम स्वरुप ‘धाता’ सूर्य की महिमा एवं ‘लोलार्क’ की प्राचीन कथा : चैत्र मास में करें सूर्य के इस रूप की उपासना।

भगवान् सूर्य को चैत्र महीने में धाता कहा जाता है।

धाता सूर्य का ध्यान श्लोक :

धाता कृतस्थली हेतिर्वासुकी रथकृन्मुने पुलस्त्यस्तुम्बुरुरिति मधुमासं नयन्त्यमी ॥ १ ॥

धाता शुभस्य मे दाता भूयो भूयोऽपि भूयसः । रश्मिजालसमाश्रृिष्टस्तमस्तोमविनाशनः ॥ २ ॥

अर्थात- हम उस भगवान् सूर्य को नमन करते हैं जो चैत्र महीने में धाता नाम से जाने जाते हैं। वे अपने रथ पर अप्सरा कृतस्थली, पुलस्त्य ऋषि, वासुकी सर्प, रथकृत् यक्ष, हेति राक्षस और तुम्बुरु गंधर्व के साथ विराजमान रहते हैं।

उनकी किरणें अंधकार को दूर करती हैं और हमें बार-बार आशीर्वाद प्रदान करती हैं। धाता सूर्य आठ हजार किरणों के साथ तपते हैं और उनका वर्ण (रंग) रक्त के समान लाल है।

धाता सूर्य के स्वरुप और उनकी उपासना के लाभ को विस्तार से जानें :

वे अपने रथ पर अप्सरा कृतस्थली, पुलस्त्य ऋषि, वासुकी सर्प, रथकृत् यक्ष, हेति राक्षस और तुम्बुरु गंधर्व के साथ विराजमान रहते हैं। सूर्य की आठ हजार किरणें होती हैं और उनका रंग लाल है। वे सभी जीवित प्राणियों को जीवन और ऊर्जा प्रदान करते हैं।

धाता सूर्य एक शक्तिशाली देवता हैं जो अंधकार और अज्ञानता को दूर कर सकते हैं। वे हमें स्वास्थ्य, धन और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। हमें धाता सूर्य से उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन के लिए विनती करनी चाहिए।

यहाँ उन छह पात्रों का विस्तृत विवरण दिया गया है जो धाता सूर्य के साथ उनके रथ पर हैं:

  • कृतस्थली: वह एक अप्सरा हैं, जो एक दिव्य अप्सरा हैं। वह अपनी सुंदरता और संगीत और नृत्य में अपने कौशल के लिए जानी जाती हैं।
  • पुलस्त्य: वह सप्तर्षियों में से एक हैं। वह अपनी बुद्धि और वेदों के अपने ज्ञान के लिए जाने जाते हैं।
  • वासुकी: वह सर्पों के राजा हैं। वह अपनी ताकत और अपनी शक्ति के लिए जाने जाते हैं।
  • रथकृत्: वह एक यक्ष हैं, जो एक प्रकृति आत्मा हैं। वह रथ बनाने में अपने कौशल के लिए जाने जाते हैं।
  • हेति: वह एक राक्षस हैं। वह अपनी ताकत और चालाकी के लिए जाने जाते हैं।
  • तुम्बुरु: वह एक गंधर्व हैं, जो एक दिव्य संगीतकार हैं। वह अपनी सुंदर गायन और वीणा बजाने में अपने कौशल के लिए जाने जाते हैं।

ये छह पात्र धाता सूर्य की शक्ति और व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।

  • कृतस्थली उनकी सुंदरता और आनंद लाने की उनकी क्षमता का प्रतिनिधित्व करती हैं।
  • पुलस्त्य उनकी बुद्धि और उनके ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • वासुकी उनकी ताकत और प्रकृति पर उनकी शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • रथकृत् उनकी रचनात्मक शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • हेति बाधाओं को दूर करने की उनकी क्षमता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • तुम्बुरु उनके सद्भाव और शांति और आनंद को दुनिया में लाने की उनकी क्षमता का प्रतिनिधित्व करते हैं।

जब हम धाता सूर्य से प्रार्थना करते हैं, तो हम इन सभी क्षेत्रों में उनका आशीर्वाद मांग रहे हैं। हम उनसे हमें सुंदर, बुद्धिमान, मजबूत, रचनात्मक और सफल बनने में मदद करने के लिए कह रहे हैं।

हम उनसे बाधाओं को दूर करने और स्वयं और अपने आसपास की दुनिया के साथ सद्भाव में रहने में भी मदद करने के लिए कह रहे हैं।

भगवान् सूर्य का काशीगमन तथा ‘लोलार्क’ की कथा

काशी निवास के दौरान सूर्य देव ने कुछ ऐसा देखा की उन्हें काशी से प्रेम हो गया, और वे इस प्रकार से मोहित हुए की उन्हें ‘लोलार्क’ नाम से जाना जाने लगा।

भगवान सूर्य को शिवजी का आदेश।

एक बार भगवान् शिव ने सूर्य देव को बुलाया और उन्हें कहा, “हे सप्ताश्ववाहन! “तुम मङ्गलमयी काशीपुरी जाओ। वहाँ का राजा दिवोदास परम धार्मिक व्यक्ति है। मैं चाहता हूँ कि तुम उससे धर्मविरुद्ध आचरण करवाओ ताकि काशी उजड़ जाए।

परन्तु ध्यान रखना कि तुम उसे अपमानित मत करना। क्योंकि धर्माचरण में लगे हुए सत्पुरुष का जो अनादर किया जाता है; वह अपने ही ऊपर पड़ता है और वैसा करने से महान् पाप होता है। यदि तुम्हारे बुद्धिबल से काशी का राजा दिवोदास धर्मच्युत (धर्मविरुद्ध आचरण करने वाला) हो जाए, तब अपनी दुःसह (असहनीय) किरणों से तुम नगर को उजाड़ देना।”

शिव ने सूर्य देव को समझाया कि उन्होंने देवताओं और योगिनियों को भी काशी भेजा था, लेकिन वे सब मिलकर भी दिवोदास के धर्माचरण में कोई कमी नहीं ढूँढ सके थे। अतः तुम भी एक बार प्रयास कर के देखो।

शिव ने कहा, “तुम इस संसार में जितने भी जीव हैं, तुम उन सबकी चेष्टाओं को जानते हो, इसलिये लोकच्चक्षु कहलाते हो। अतः मेरे कार्य की सिद्धि के लिए तुम शीघ्र जाओ। मैं काशी को दिवोदास से खाली कराकर वहाँ निवास करना चाहता हूँ।”

सूर्य देव का काशी प्रेम और निवास

सूर्य देव ने शिव की आज्ञा का पालन किया और काशी गए। वहाँ उन्होंने दिवोदास के धर्माचरण में बाधा डालना शुरू किया।

भगवान् शिव ने सूर्यदेव को काशी भेजा था। सूर्यदेव ने काशी को धर्म का सर्वोच्च केंद्र के रूप में देखा। वहाँ के राजा से लेकर आम नागरिक तक सभी धर्मपरायण थे। सूर्यदेव ने अनेक प्रयास किए, लेकिन उन्हें काशी में किसी भी व्यक्ति का धर्माचरण भ्रष्ट नहीं मिला।

वे अनेक रूप धारण करके काशी में रहे। कभी-कभी उन्होंने अनेक प्रकार के बातों और कथनों द्वारा अनेक प्रकार के व्रतों का उपदेश करके काशी के नर-नारियों को बहकाने की चेष्टा की, लेकिन वे किसी को भी धर्म के मार्ग से हटाने में सफल नहीं हुए।

इस प्रकार काशी में विचरते हुए सूर्य ने कभी किसी भी मनुष्य के धर्म-आचरण में किसी प्रकार की कमी को नहीं पाया।

सूर्यदेव काशी में जितने दिनों तक रहे, उतने दिनों तक उन्हें किसी भी व्यक्ति का धर्माचरण में कोई प्रमाद नहीं मिला। यह देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान् शिव को बताया कि काशी धर्म का सर्वोच्च केंद्र है। वहां के राजा को तो छोड़िये किसी साधारण मनुष्य को भी धर्म के मार्ग से भटकाना सम्भव नहीं है। 

काशी के द्वादशादित्य ‘लोलार्क’ की महिमा और दर्शन का महत्व।

इस संसार में आप जितनी भी बार जन्म लेंगे आपको हर बार स्त्री, पुत्र और धन का सुख प्राप्त हो सकता है, मगर काशी में निवास सुख नहीं मिल सकता।

ऐसी दुर्लभ काशीपुरी को प्राप्त करके कोई भी सचेत मनुष्य (जिसकी चेतना जीवित है। ) वो उसे कैसे छोड़ सकता है?

इस तरह काशी में धर्म का प्रभाव देखकर भगवान् सूर्य का मन काशी में रहने के लिए लोल (लोलुप) अर्थात् चंचल हो उठा। इसी कारण काशी में भगवान् सूर्य ‘लोलार्क’ नाम से प्रसिद्ध हुए।

दक्षिण दिशा में अस्सी संगम निकट ‘लोलार्क’ निवास करते हैं। वे सदा काशी में रहकर काशी के निवासियों का योग क्षेम का वहन करते हैं अर्थात काशीवासियों को सदा सुख प्रदान करते हैं और अनेक प्रकार के कष्टों से उनकी रक्षा करते हैं।

मार्गशीर्ष मास की षष्ठी या सप्तमी तिथि को रवि योग होने पर मनुष्य वहाँ की यात्रा तथा लोलार्क-सूर्यका दर्शन करके समस्त पापों से मुक्त हो जाता है, जो मनुष्य रविवार को लोलार्क सूर्य का दर्शन करता है, उसे कोई दुःख नहीं होता है।

इस प्रकार भगवान् सूर्य ने काशी के प्रभाव में आकर काशी पर अपनी कृपा कर के वहां लोलार्क के नाम से निवास करने लगें।

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