अर्धनारीश्वर शिव जी की कथा | महादेव को क्यूँ लेना पड़ा अर्धनारीश्वर का रूप | Ardhanarishvara story in hindi

भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप की कथा

जब इस सृष्टि का प्रारम्भ हुआ था तब ब्रह्माजी द्वारा रची गई मानसिक सृष्टि का विस्तार नहीं हो पा रहा था, तब ब्रह्माजी को बहुत दुख हुआ। उसी समय आकाशवाणी हुई- ‘ब्रह्मन’ अब मैथुनी सृष्टि करो। आकाशवाणी सुनकर ब्रह्माजी ने मैथुनी (स्त्री-पुरुष के समागम से संतानोत्पत्ति) सृष्टि रचने का निश्चय तो कर लिया, किन्तु उस समय तक इस सृष्टि मे किसी नारी की उत्पत्ति नहीं होने के कारण वे अपने निश्चय को पूरा करने मे सफल नहीं ही सके थे।

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तब ब्रह्माजी ने यह विचार किया की परमेश्वर भगवान शिव की कृपा के बिना मैथुनी सृष्टि नहीं हो सकती। अतः ब्रह्माजी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने लगे। बहुत लंबे समय तक ब्रह्माजी अपने हृदय से महादेव का ध्यान करते रहें।

शिव जी ने ब्रह्माजी को अर्धनारीश्वर रूप में दर्शन क्यों दिया?

भगवान शिव अंतर्यामी हैं उन्हें ब्रह्माजी के इस तपस्या का कारण पता था अतः उनके कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान उमा-महेश्वर (शिव) ने उन्हें अर्धनारीश्वर रूप में दर्शन दिया। देवों के देव भगवान शिव के उस दिव्य रूप को देखकर ब्रह्माजी आनंदित हो उठे और उन्होंने भूमि पर लेटकर उस अलौकिक स्वरूप को दंडवत प्रणाम किया।

तब भगवान शिव ने मुस्कुराकर कहा- ‘पुत्र ब्रह्मा! मुझे तुम्हारा मनोरथ पता है। तुमने प्रजाओं की वृद्धि के लिए जो यह कठिन तपस्या की है; मैं उससे बहुत प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूंगा।’ ऐसा कहकर भगवान शिव ने अपने शरीर के आधे भाग से उमादेवी को अलग कर दिया। उसके उपरांत ब्रह्माजी ने परमेश्वर शिव के आधे शरीर से अलग हुई उन परम शक्ति को साष्टांग प्रणाम करके हाथ जोड़कर कहने लगें-

‘शिवे! सृष्टि के प्रारम्भ में आपके पति देवाधिदेव शम्भू ने मेरी रचना की थी। भगवति! उन्हीं के आदेश से मैंने देवता आदि समस्त प्रजाओं की मानसिक सृष्टि की। परंतु अनेक प्रयासों के बाद भी उनकी वृद्धि करने मे मैं असफल रहा हूँ। अतः अब स्त्री-पुरुष के समागम से मैं प्रजाओं को उत्पन्न कर सृष्टि का विस्तार करना चाहता हूँ परन्तु अभी तक इस धरा पर किसी नारी की उत्पत्ति नहीं हुई है और नारी कुल की उत्पत्ति करना मेरी शक्ति के बाहर की बात है।

देवि! आप सम्पूर्ण सृष्टि तथा समस्त शक्तियों की उद्गमस्थली हैं। इसीलिए हे मातेश्वरी, आप मुझे नारी कुल की सृष्टि करने की शक्ति प्रदान करें। मैं आपसे एक और विनती करना चाहता हूँ इस सम्पूर्ण जगत की वृद्धि के लिए आप मेरे पुत्र दक्ष की पुत्री के रूप में जन्म लेने की भी कृपा करें।’

शिव और शक्ति कौन है?

ब्रह्माजी की प्रार्थना सुनकर परमेश्वरी शिवा ने ‘तथास्तु’ ऐसा हीं होगा कहा और ब्रह्माजी को उन्होने नारी कुल की सृष्टि करने की  शक्ति प्रदान की। इसके लिए उन्होने अपने दोनों भौंहों के बीच से अपने हीं समान कांतिमती एक शक्ति प्रकट की। उसे अलौलिक शक्ति देखकर देवों के देव भगवान शिव ने हँसते हुए कहा – ‘देवि! ब्रह्मा ने कठोर तपस्या द्वारा तुम्हारी आराधना की है। अब तुम उनपर प्रसन्न हो जाओ और उनका मनोरथ पूर्ण करो।’

महादेव की इस आज्ञा को पूर्ण करने के लिए वह शक्ति ब्रह्माजी की प्रार्थना के अनुसार दक्ष की पुत्री बन गई। इस प्रकार ब्रह्माजी को अनोखी शक्ति देकर देवी शिवा पुनः महादेव के शरीर मे समा गईं। भगवान शिव भी अन्तर्धान हो गये। तभी से इस लोक में मैथुनी सृष्टि चल पड़ी। अपनी तपस्या मे सफल होकर ब्रह्माजी भी भोलेनाथ का स्मरण करते हुए इस सृष्टि का विस्तार करने लगें।

इस प्रकार शिव और शक्ति एक दूसरे से अभिन्न तथा सृष्टि के आदिकारण हैं। जैसे पुष्प में गंध, चन्द्र में चंद्रिका, सूर्य में प्रभा और स्वभाव सिद्ध है, उसी प्रकार शिव में शक्ति भी स्वभाव सिद्ध है। शिव में इकार हीं शक्ति है। शिव कुट्स्थ तत्व है और शक्ति परिणामी तत्व। शिव अजन्मा आत्मा है और शक्ति जगत में नाम-रूप के द्वारा व्यक्त सत्ता। यही अर्धनारीश्वर शिव का रहस्य है।

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